नज़राना इश्क़ का (भाग : 31)
निमय की हालत पहले से काफी बेहतर थी मगर उसे उठने से मना किया गया था। वैसे भी घुटने और कमर पर चोट के कारण उसका कुछ समय तक चल फिर पाना बहुत मुश्किल था। सबके कहने पर, यहां तक कि निमय के भी कहने के बाद भी जाह्नवी अपनी जिद पर अड़ी रही और वह अपने भाई के पास रुक गयी, बाकी सभी घर चले गए। श्रीराम जी ने थोड़ी देर बाद आने की बात कही, और वे भी चले गए। विक्रम ने जानकी जी को घर छोड़ा और वे दोनो भी अपने घर चले गए।
उन सबकी होली रंगीन होने के बजाए गमनीन सी हो गयी थी मगर निमय के पहले से ठीक होने की खबर ने सभी को तिनके का सहारा दिया। सभी को उम्मीद थी कि अब निमय जल्दी ही पूरी तरह से ठीक हो जाएगा।
फरी की व्यथा सबसे विचित्र थी, वह अपने मन की बात किसी से कह भी नहीं पा रही थी और मन ही मन निमय के जल्दी ठीक होने की अनेकों दुआएं करते रही, उसे खुद नहीं पता कि ऐसा बस दोस्ती के कारण हो रहा था या कोई और वजह थी मगर निमय को इस हाल में देखकर, उसको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।
जाह्नवी, निमय के बेड के पास एक चेयर पर बैठी हुई थी। अपने भाई को अपने सामने पट्टियों में लिपटे देखकर उसका दिल बैठा जा रहा था, मगर उसके चेहरे पर उभरी हल्की मुस्कान को देखकर दिल को सुकून भी मिल रहा था। चोट कितनी गहरी थी और दर्द कितना ज्यादा था ये तो निमय ही जानता था लेकिन मजाल कि जालिम अपनी बहन के सामने एक पल को भी मुस्कुराना बन्द कर दे।
"ये सड़क वाले भी बहुत गलत जगह पोल बनाते हैं न भाई…!" जाह्नवी ने निमय की ओर देखते हुए मुँह बनाकर धीरे से पूछा। निमय एक पल को उसकी ओर आश्चर्य भरी निगाह से देखा और फिर मुस्कुराने लगा।
"और कारों को तो सड़क पर चलाना बैन कर देना चाहिए! मतलब लोग इतने अंधे होते हैं कि उन्हें ताड़ के पेड़ जैसा साँड़ मेरा मतलब इंसान भी दिखाई नहीं देते। यही नहीं फिर वो कार भी किसी को दिखाई नहीं देती…!" जाह्नवी रोनी सूरत बनाकर मुँह बनाते हुए बोली। निमय बस उसे घूरता रहा।
"अ..अबे गधी…!" निमय ने बोलने की कोशिश की मगर उसके मुँह से आवाज नहीं निकल पा रही थी।
"बोल मत..! देख के नहीं चल सकता था क्या? ज्यादा चोट लग जाती तो..? पता है पापा मम्मी कितना परेशान थे? उनका तो छोड़ फरी और विक्रम दिनभर यही बैठे रहे! आज होली थी, मैंने रंग चुनकर भी रखा था, मम्मी ने खूब सारे पकवान बनाने का प्लान किया था। पापा तो अपने दोस्तों के साथ खेलने भी जा चुके थे। लेकिन नहीं भाई साहब को हल्क बनना है, सीधा कार से कौन टकराता है यार…!" जाह्नवी बक बक करते हुए अपना माथा पीटने लगी।
"जानता हूँ जानू! मैंने सब खराब कर दिया न?" निमय न चाहते हुए भी उदास स्वर में बोला।
"हट्ट गधा कहीं का! दुबारा सैड हुआ न तो तेरी दोनो टांगे सच में तोड़ दूंगी। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन से दिन कौन सा त्यौहार है। तू मेरे साथ होता है तो मैं हर दिन को सेलिब्रेट करती हूँ।" जाह्नवी अपने होंठों पर ढेर सारा मुस्कान सजाकर बोली, इस वक़्त उसके गालों पर डिम्पल आ गए थे, जिन्हें देखकर निमय फिर मुस्कुरा उठा।
"हूँ…!" निमय के बोलने से साफ पता चल रहा उसे बोलने में काफी कठिनाई हो रही थी।
"तू मत बोल..! ये बता तेरा कोई ऐसा दुश्मन है जो तुझे जान से मारना चाहता हो?" जाह्नवी उसकी आँखों मे गौर से झांकते हुए बोली। निमय बस धीरे से मुस्कुराया, मानों उसके पास इस सवाल का कोई जवाब न हो।
"हाँ! वैसे भी तेरे तो कई सारे दुश्मन होंगे, सुरमा जो बना फिरता है। पर सच तो ये है भाई तू सब मेरे लिए करता है, मेरी वजह से तेरी यह हालत हुई, अगर मैं नहीं होती तो तुझे कुछ भी नहीं होता…! मुझे तो पैदा भी नहीं होना था।" जाह्नवी की आँखों से आँसू झर-झर कर बहने लगे।
"चुप्प…..प!" निमय कसमसा उठा। उसके होंठ भींच गए, उसकी आँखों में पानी भर आया। "आज तो कह दिया मगर आइंदा ऐसा कभी मत कहना! अगर जाह्नवी नहीं तो निमय का भी कोई अस्तित्व नहीं! तू मेरा सबकुछ है, अगर तेरे लिए नहीं लड़ सकता तो फिर और किसके लिए लड़ूंगा पागल…!" निमय ने हाथ उठाने की कोशिश की मगर जाह्नवी के चेहरे तक न ले जा सका। जाह्नवी खुद चेयर से उतरकर उसकी गोदी में अपना सिर रखते हुए उसके हाथ को अपने गाल पर रख लिया। उसकी आंखों में आँसू थे। मगर इन आँसुओ में दर्द नहीं खुशी बह रही थी।
"समझी न पगलिया…!" निमय उसके गाल को सहलाते हुए बोला।
"मेरा भाई…!" जाह्नवी को अब बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। वह अपने भीतर अलग सी ऊर्जा महसूस कर रही थी, उसको खुश देखकर निमय भी बेहद खुश था।
"जब मैं ठीक हो जाऊंगा न तो हम दोनों होली खेलेंगे.. ठीक है ना..!" निमय मुस्कुराकर बोला।
"नहीं…! हम चारों…..!" कहते हुए जाह्नवी दी, बदले में निमय भी मुस्कुराने लगा। "और हाँ! जल्दी ठीक हो जा, मेरे को भाभी भी चाहिए न…!" जाह्नवी ने उठकर वापिस कुर्सी पर बैठ निमय को छेड़ते हुए कहा।
"अभी भी तेरी सुई भाभी पे ही अटकी है..? रुक तेरी तो..!" कहते हुए निमय ने उठने की कोशिश की पर वह नाकाम रहा।
"अभी तू मुझे पीट नहीं सकता, इसलिए जितना कह रही हूँ उतना कर दियो चुपचाप से..!" जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए कहा।
"कुत्ती कहीं की..!" निमय ने भी सड़ा सा मुँह बनाया।
"बड़ा आया कुत्ता..! भाभी लाना है, इसलिये जल्दी से ठीक हो जा..!" जाह्नवी ने मुँह और टेड़ा किया। ये देखकर वार्ड में भर्ती सभी मरीज हँसने लगे, निमय बुरी तरह झेंप गया। जाह्नवी ने गुस्से से भरकर उन सबकी तरफ देखा तो सबने इन दोनों की तरफ से मवन ध्यान हटा लिया। इससे पहले जाह्नवी कुछ और बोलती उसका फोन रिंग करने लगा। वह फ़ोन बाहर निकालकर आंखे फाड़े देखने लगी।
"क्या हुआ? कौन है?" उसको ऐसा करते देख निमय ने पूछा।
"फरी का कॉल आया है!" जाह्नवी ने हँसते हुए कहा।
"तो इसमें शॉकिंग क्या है? जो ऐसे बड़ी बड़ी आंखे करके घूरे जा रही है!" निमय ने पूछा।
"कुछ नहीं बुद्धु…! वो जस्ट अभी ही अपने घर पहुँची होगी, मेरा मतलब विक्रम के घर।" जाह्नवी ने कहा, तब तक कॉल कट गया, जाह्नवी ने खुद से कॉल करने के लिए लॉक ओपन किया तब तक फिर से कॉल आ गया।
"हा बोलो फरु..!" जाह्नवी ने मुस्कान भरकर कहा।
"हेलो! बस अभी घर आई, यही बताने कॉल की थी।" फरी ने कहा, जिसपर जाह्नवी ने निमय को इशारा किया कि देखो मैं सही थी।
"बस इतनी सी बात..!" जाह्नवी ने बनावटी आश्चर्य जताया।
"हाँ..! मतलब नहीं, निमय जी अब कैसे हैं..!" फरी ने अटकते हुए जवाब दिया।
"वो तो वैसा ही है, जैसा पहले था, बिंदास एकदम..!" जाह्नवी हँसते हुए बोली।
"सच बताओ आप प्लीज!" फरी ने कहा, उसके स्वर में चिंता साफ झलक रही थी।
"लो उसी से बात कर लो..!" कहते हुए जाह्नवी ने निमय की ओर फोन बढ़ाया। मगर निमय बात करने से नकारने लगा।
"नहीं, कोई नहीं! मैं उनसे बाद में बात कर लुंगी। कान्हा जी सब ठीक करेंगे।" फरी ने भी बात करने से मना करते हुए एक दृढ़ विश्वास के साथ कहा। कहीं न कहीं दोनो ही एक दूसरे से बात करना चाहकर भी बात करने से हिचक रहे थे।
"हाँ ठीक है! बाय! राधे कृष्णा!" कहने के साथ ही जाह्नवी ने कॉल कट कर दिया।
"लो देख लो इनको, कैसे दोस्त हैं जो एक दूसरे से बात न किया जा रहा वो भी इस हाल में…!" जाह्नवी, निमय को देखकर मुँह बनाते हुए बोली।
"हाँ चल ठीक है ना! अभी थोड़े दिन पहले दोस्त बने, फिर भी इतनी परवाह… कम थोड़े हैं।" निमय धीरे से बुदबुदाया।
"क्या बोला? जोर से बोल..!" जाह्नवी दांत दिखाते हुए बोली।
"कुछ नहीं, जाने दे..! जा तू कुछ खा पी ले, मेरे लिए तो पापा ही लाएंगे, और तुझ जैसी चुड़ैल के हाथों बाहर का कुछ खाना तो नसीब होने से रहा..!" निमय ने नाक सिकोड़कर कहा।
"चल चल…! जल्दी ठीक हो जा फिर दोनों बैठ के पानीपूरी खाने चलेंगे! और सुन मैंने पापा से अपने लिए भी मंगा लिया है सो वरी नॉट! ये चुड़ैल भी तेरे ठीक होने तक बाहर का खाना नहीं खायेगी मेरे भूत…!" जाह्नवी ने उसके नाक को पकड़कर हिलाते हुए कहा।
"हूँ…!" निमय सड़ा सा मुँह बनाया।
"ठीक है मैं जरा टेरिस पर ताजी हवा खाकर आती हूँ, यहां की ए.सी. में तो मेरा दम घुटने लगा है।" जाह्नवी अपने गले को पकड़ते हुए बोली।
"ठीक है!" कहते हुए निमय मुस्कुराया।
"और अब चुपचाप आराम कर, तेरा फोन तेरे साइड में रख दिया है। अभी तो तेरा एक हाथ बिजी है, मगर दूसरे हाथ से कुछ चलाने का मन हो तो कर लेना…!" हँसते हुए कहकर जाह्नवी वहां से बाहर चली गयी।
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छत पर चारो ओर का नजारा बेहद खूबसूरत नजर आ रहा था। पास के ही मंदिर से घन्टानाद हो रहा था, जिसे सुनकर जाह्नवी भी ईश्वर से प्रार्थना करने लग गयी। ठंडी शीतल हवा ने उसके दिन भर के थकान को दूर कर स्फूर्ति भर दी थी। वैसे भी निमय की मुस्कान ने उसकी उदासी को दूर कर दिया था। छत पर और भी कई लोग थे, जाह्नवी एक कोने में खड़ी हो गयी और मंदिर की ओर देखने लगी।
'हे कान्हा! मेरे भाई को जल्दी ठीक कर देना..! मुझे नहीं पता वो ऐसा क्यों हैं लेकिन आपने मुझे मुझसे तीन मिनट बड़ा सुरक्षा कवच दिया है। जो दुनिया के बड़े से बड़े गम को मुझ तक आने नहीं देता। उसके होते कोई दुख मेरी ओर आँख उठाकर भी नहीं देख पाता। उसने हमेशा मुझे अपनी जिम्मेदारी समझा है, हाँ! मैं मानती हूँ कि मैं बहुत बड़ी बेवकूफ हूँ। मैं किसी को भी उसके करीब नहीं आने देती, पर तुम जानते हो ऐसा क्यों है ना? वो बहुत मासूम है, उसे सही गलत का पता नहीं चलता, जो दिखता है उसे मान लेता है। पर ये दुनिया वैसी नहीं है जैसी दिखती है।
पर मैंने फरी की आँखों में वही चमक देखी है, जो मेरी भाई की आंखों में है। वो दोनो सिर्फ एक दूसरे के लिए बने हैं। उन्हें जल्दी ही एक होना होगा, ताकि फिर कोई और मेरे भाई भाभी पर अपनी गंदी नजर न डाले..!
काश..! काश कि भाई मैं तुमसे कह पाती कि फरु ही मुझे अपनी भाभी के रूप में चाहिए। मैं भी कितना अजीब सोचती हूँ न..!
तुम तो प्यार करते हो उससे, पर अब तुम्हें उसे हासिल भी करना ही होगा! एक बार जल्दी से ठीक हो जाओ, फिर ….!' ख्यालों में डूबी हुई जाह्नवी के होंठो पर बरबस ही मुस्कान छा गयी।
'पता नहीं फरु.. तुम मेरे भाई को पसंद करती हो या नहीं! पर मैं दावे के साथ कह सकती हूँ इससे परफेक्ट पार्टनर तुम्हें पूरी दुनिया में कहीं और नहीं मिलेगा, और जिस तरह तुम इसके साथ बिहेव करती हो, लगता तो यही है… और हां..! तुम्हारा, मेरी भाभी बनना तय है।"
न जाने क्यों जाह्नवी मुस्कुराने के साथ ही शर्मा गयी, वह तेजी से सीढ़ियों की ओर घूमी और नीचे उतरने लगी।
क्रमशः…!
🤫
02-Mar-2022 11:47 PM
जाह्नवी और उसके ख्यालात...!
Reply
Seema Priyadarshini sahay
07-Feb-2022 09:49 PM
Nice part👌👌
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मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 03:34 PM
Thank you so much ❤️
Reply
Prateek
07-Feb-2022 09:33 PM
Superb
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मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 03:33 PM
Thank you so much ❤️
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